Sunday, February 6, 2011

मॉं मुझे बचाओ...


स्त्री-भ्रुण हत्या एक समस्या
मे ग्रासरुटस् कॉमिक्स की भुमिका 
2 से 4 फरवरी 2011 औरंगाबाद, महाराष्ट्र.



आज लडकीया हमारे देश में सुरक्षित नही है। आज लडकीयॉं हमारे राज्य मे सुरक्षित नही है। न ही शहर मे और न ही गॉंव मे लडकीया सुरक्षित है। अब तो घर में भी लडकीयॉं सुरक्षित नही है, और दुर्भाग्य की बात यह है की आज लडकीयॉं लडकीयोंके पेट मे भी सुरक्षित नही है।
क्या होगा इस देश का... विकास तो हम कर रहे है पर यह सच्चाई भी हमे देखनी चाहीये। जिस प्रकार आज स्त्रीभ्रुण हत्या (लडकीयोंको पेट मे ही मार देना) का प्रमाण बढता जा रहा है अगर ये ऐसे ही चलता रहा तो हम आने वाली नस्ल को क्या जवाब देंगे। आज कल डॉक्टरोंने भी अपने व्यवसाय को गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे है। उन्हे थोडा सोचना होगा क्या यह सही है। लडकी गिराने के लिये आने वाली व्यक्ती भले ही अशिक्षित हो, नादान हो, या फिर उसकी जो भी कोई मजबूरी हो पर डॉक्टर तो भगवान का रुप माना जाता है,
और यह भगवान का रुप आज शैतान कैसे बन रहा है।... जरा सोचो... आगे एक दिन ऐसा भी आयेगा की लडकीयॉ देखना भी हमे नसीब न हो.. और वो वक्त मानव जाती का आखरी वक्त होगा .


कार्यशाला का उद्देश स्त्रीभ्रुण हत्या जैसी समस्या आज भी कुछ समाजो मे है। और उसपर खुल कर बोलने का कोई भी साहस नही करता। जीन जीन समाजोंमे यह समस्या है वहा इस विषय पर खुलके बात करना बेहद जरुरी है। इसी लिये ग्रासरुटस् कॉमिक्स के माध्यम से इस समस्या से जुडी कुछ कडीया कथा मे ढालकर उनके कॉमिक्स बनाकर उस समाज/गॉंव मे लगाये जीससे उनके बीच इस विषयपर चर्चा हो। और उन्हे इस बात को खुलकर बोलने का अवसर प्राप्त हो तथा उनके हाथ ग्रासरुटस कॉमिक्स जैसा तंत्र अवगत हो।

आज देश की सरकार तथा राज्य सरकारव्दारा अनेक उपक्रम लडकीयोंके लिये उपलब्ध है। तथा स्त्री-पुरुष समानता पर बेहद बडे बडे कार्यक्रमोंका आयोजन भी किया गया। इससे लडकीयोंकी संख्या बढने मे बेहद फायदा हुवा परंतु इससे यह समस्या पुरी तरहा नष्ट नही हुयी। आज भी कई गावं ऐसे है, कई समाज ऐसे है जहा आज भी लडकीयोंका जन्म होतेही मार दिया जाता है। इसके कारण कुछ भी हो परंतु इससे लडकीयोंकी संख्या दिनबदिन कम होती जा रही है। परिणामतः आज कई समाज ऐसे है जहॉं लडकोंकी शादी के लिये लडकीया नही मिल रही।
औरंगाबाद के कचनेर तांडा यहा यह समस्या आज भी मौजुद है। वहा एक समाज मे आज भी लडकीयोंका जन्म होते ही उनके मुंह मे तंबाखु या फिर शराब डालकर उन्हे मार दिया जाता है। यह बात वह गावं वाले भी जानते है परंतु वह खुलकर बोल नही पाते। किसी को बता नही पाते। इस समस्या को खुलकर सामने लाने के लिये वॉटर संस्था और वर्ल्ड कॉमिक्स इंडीया मराठवाडा क्लब इन्होने मिलकर (फरवरी 2 से 4, 2011) एक ग्रासरुट कॉमिक्स कार्यशाला का आयोजन कीया जिसका नाम मराठी मे रखा गया स्त्रीभ्रुण हत्या एक समस्या।
आखरी दिन कार्यशाला फिल्ड टेस्टींग का दिन था। आज दो दिनोमें सभी प्रतिभागीयोंने बनाये सब कॉमिक्स की झेरॉक्स कॉपी निकाल कर उस कॉमिक्स वॉलपोस्टर को लोगोंतक पहुंचाने का महत्वपूर्ण काम को अंजाम देना था। सभी प्रतिभागीयोंको फिल्ड टेस्टींग की पुरी तरह जानकारी दि गयी। और उन्हे कुछ सुचनायें भी की। वॉलपोस्टर चिपकाने के लिये सभी आवश्यक सामान लेकर जैसे, गम, फेव्हीकॉल, सेलोटेप आदी चिजें लेकर प्रतिभागीयोंकी टिम चल पडी। प्रतिभागींयोंके साथ कार्यशाला के ट्रेनर तथा सहयोगी मॅडम भी थे। फिल्ड टेस्टींग के लिये दो गॉंवोंमे जाना था।
     पहिले गावं मे सभी गावं के लोगोंको इकठ्ठा बुलाकर उनको 3 दिन की कार्यशाला के बारेमें जानकारी दी गयी तथा पिछले दो दिनोंमे जो जो कॉमिक्स बनाये गये उनको सभी गावंवालों के सामने पढा गया और उसपर उनकी राय पुछी। कुछ कुछ गावं वालोंको यह अपनी ही कहानी लगी और इस वजह से वह झगडा करने लगे, तथा कुछ महीलाओं के दिलको यह कथा छु गई तो वह अपने आसुं रोक ना पाये।
    कहानीयॉं पढने के बाद सभी कॉमिक्स को गोंद के सहारे गावं के अलग अलग हिस्सोंमे चिपकाया गया। जैसे की चौपाला, आने जाने का रास्ता, अंगनबाडी, पाठशाला, ग्रामपंचायत कार्यालय, दुकान आदी. जगहोंपर जहॉं लोगोंकी भीड होती हो ऐसी जगहोंपर कॉमिक्स चिपकाये गये।
पहले गावं के बाद दुसरे गावं फिल्ड टेस्टींग के लिये जाना था। दुसरे गावं मे सभी प्रतिभागीयोंको अपना अपना कॉमिक्स लेकर गावं के अलग अलग हिस्सोमे भेजा गया और उनको उनकी कहानी गावं वालोंको पढकर सुनाने को कहॉं। कहानी सुनाने के बाद वह कॉमिक्स किसी भीड होने वाले जगाहपर चिपका दी गयी।
     शाम 4 बजे तक यह फिल्ड टेस्टींग चलती रही। 4 बजे के बाद सभी प्रतिभागी तथा संस्थाके मॅडम और संसाधन व्यक्ती कार्यशाला का समापन करके निकल पडे। इस प्रकार कार्यशाला का तिसरा और अंतीम दिन पुरा हुवा।
इस कार्यशाला की कुछ क्षण आप नीचे दिये हुये लिंक पर क्लीक करके देख सकते है।

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